नीट के फायदे और नुकसान


अब देश के हर मेडिकल और डेंटल कॉलेज में नीट के द्वारा ही नामांकन होगा. वर्ष 2017 से इसे पूरी तरह से देशभर में लागू कर दिया गया है. कोई भी राज्य अब राज्य स्तर पर मेडिकल की परीक्षा का आयोजन नहीं कर सकता. राज्यों के मेडिकल कॉलेजों में भी अब नीट के द्वारा ही नामांकन होगा. संक्षेप में कहें तो देश के हर सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों में दाखिला अब नीट में प्रदर्शन के आधार पर ही मिलेगा. आगे हम नीट के फायदे और नुकसान के बारे में चर्चा करेंगे.

नीट के फायदे और नुकसान
नीट पूरे देश में भले लागू हो गया हो, लेकिन अभी भी इससे जुड़े तरह-तरह के प्रश्न छात्रों और अभिभावकों के मन में घूम रहे हैं. इसमें कोई संदेह नहीं कि नीट मौजूदा समय के सबसे चर्चित परीक्षाओं में से एक है. इसके वजूद को पहले भी चुनौती मिली थी, आज भी मिल रही है. मगर, आज सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला इसकी रीढ़ की हड्डी के रूप में काम कर रहा है. केंद्र और राज्य नीट को पूर्ण रूप से लागू करने के लिया बाध्य हैं.  


नीट के फायदे
क) एआईपीएमटी समर्थकों को नीट से परेशान नहीं होना चाहिए. दोनों परीक्षाओं का प्रश्न पत्र पैटर्न और पाठ्यक्रम काफी हद तक समान है. नीट के द्वारा छात्र एआईपीएमटी की तरह ही बीएचयू (वाराणसी) और एएफएमसी (पुणे) जैसे प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेजों में दाखिला ले सकते हैं. नीट का आयोजन भी सीबीएसई ही करता है. इसके द्वारा देश के पंद्रह प्रतिशत मेडिकल और डेंटल कॉलेजों की सीटें ऑल इंडिया कोटे के अंतर्गत भरी जाती है.
ख) पहले प्राइवेट मेडिकल कॉलेज और राज्य अपने स्तर पर अलग-अलग मेडिकल परीक्षा का आयोजन करते थे. नीट के आने से अब देश में केवल एक मेडिकल परीक्षा होगी. छात्रों को अब केवल एक परीक्षा की तैयारी ही करनी होगी. इससे उनका न केवल कीमती समय बचेगा, बल्कि वे अन्य मेडिकल परीक्षाओं में होने वाले खर्चे से भी बचेंगे.
ग)   नीट में प्राप्त अंक के आधार पर छात्र अपने राज्य के मेडिकल कॉलेजों में भी दाखिला ले सकते हैं.
घ)   नीट के द्वारा निजी मेडिकल कॉलेजों की नामांकन प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी. अब नीट की मेरिट लिस्ट (मेधा सूची) के आधार पर छात्र निजी मेडिकल कॉलेजों की सीटों पर आसानी से दावा कर सकते हैं. पहले इन कॉलेजों में नामांकन की प्रक्रिया में पारदर्शिता का घोर अभाव होता था.
ङ)  छात्र अपने नीट रैंक के आधार पर अलग-अलग राज्यों में काउंसलिंग के लिए फॉर्म भर सकते हैं. अलग से कोई और परीक्षा देने की जरुरत नहीं है.
च)   सीबीएसई कदाचार मुक्त नीट करवाने का दावा करता है. छात्रों को परीक्षा हॉल में पेन व पेंसिल भी ले जाने की अनुमति नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में एआईपीएमटी को कदाचार के आरोप में निरस्त कर दिया था और सीबीएसई को इस परीक्षा को फिर से करवाने को कहा था. नीट के समर्थकों का कहना है कि जब सीबीएसई तमाम संसाधन होने के बावजूद एआईपीएमटी 2015 कदाचार मुक्त करवाने में असफल रहा तो राज्य व प्राइवेट मेडिकल कॉलेज अपने सीमित संसाधनों से मेडिकल की परीक्षा कदाचार एवं भ्रष्टाचार मुक्त कैसे करवा सकते हैं?
छ)  नीट की परीक्षा 10 क्षेत्रीय भाषाओँ में करायी जाती है.
ज)  नीट अन्य राज्यों को सीबीएसई के पाठ्यक्रम को अपनाने के लिए प्रेरित करेगा. पूरे देश में सामान पाठ्यक्रम लागू होने के बाद, नीट के आलोचक भी शांत हो जायेंगे.

नीट के नुकसान
क) छात्र अब नीट की परीक्षा केवल ३ बार दे सकते हैं. पहले कोई भी छात्र 25 वर्ष की आयु तक एआईपीएमटी मैं बैठ सकता था.
ख) नीट में ख़राब प्रदर्शन अब आपको काफी महंगा पड़ेगा. इससे आपका स्टेट रैंक भी प्रभावित होगा. अब आपके पास पहले की तरह राज्य स्तर की मेडिकल परीक्षा में बैठने का विकल्प नहीं है.
ग)   अगर कोई किसी कारण से नीट नहीं दे पाता तो उसका पूरा साल बर्बाद हो जायेगा. वह अगले वर्ष ही इस परीक्षा में बैठ सकता है.
घ)   वैसे राज्य जहाँ के सरकारी स्कूलों में सीबीएसई पाठ्यक्रम के अनुसार पढाई नहीं होती, उस राज्य के छात्र नीट में बुरी तरह से प्रभावित हो सकते हैं. इस परीक्षा में सीबीएसई स्कूल के छात्रों से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद होती है. 
ङ)  तमिलनाडु जैसे राज्य जहाँ पहले बारहवीं कक्षा के परिणाम के आधार पर मेडिकल कॉलेजों में दाखिला मिलता था, वहां नीट का जमकर विरोध हो रहा है. देश के हर मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए अब नीट अनिवार्य है.
च)   नीट 2017 में आरोप लगे कि अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषाओं के प्रश्न एक जैसे नहीं थे. सुप्रीम कोर्ट ने सीबीएसई को आदेश दिया कि अगले वर्ष से हर भाषा में एक समान प्रश्न पूछे जाये.
छ)  नीट प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की फीस कम करने में अब तक असफल रहा है. बल्कि, नीट लागू होने के बाद कई प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों के फीस और ज्यादा बढ़ गये हैं. अलग-अलग परीक्षाओं से छुटकारा तो नीट ने दिलवा दिया, परन्तु अब भी हर राज्य में काउंसलिंग के लिए अलग से फीस जमा करना पड़ता है. जब देश में मेडिकल की एक परीक्षा हो सकती है, तो काउंसलिंग भी किसी एक संस्था के द्वारा क्यों नहीं करवायी जा सकती.

नीट अभी लागू ही हुआ है. इसमें त्रुटियाँ हो सकती है. परन्तु हमें यह मानना होगा कि देश के मेडिकल शिक्षा में पारदर्शिता लाने के लिए नीट पहला एवं असरदार कदम है. इसे छात्रों की सहूलियत के लिए ही लाया गया है. भविष्य में नीट के द्वारा देश के स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार आने की उम्मीद है.

Comments

Subscribe our YouTube Channel

Popular posts from this blog

बिहार के मेडिकल कॉलेजों में मौजूद एमबीबीएस की सीटें

कितना होगा नीट 2017 का कट-ऑफ मार्क्स?